
Mantras are sacred sounds, syllables, or phrases that have been used for centuries as a tool for meditation, healing, and spiritual growth in many cultures, including Hinduism, Buddhism, and Jainism. In Hinduism, mantras are believed to be powerful tools for connecting with the divine and invoking spiritual energy. Ancient mantras, such as the Gayatri Mantra, the Mahamrityunjaya Mantra, and the Om Mantra, are still widely recited today and are considered to be among the most powerful mantras in Hinduism. These mantras are believed to have originated thousands of years ago, and their recitation is believed to have healing and transformative powers. Buddhism also has a rich tradition of using mantras as a spiritual practice. The most famous mantra in Buddhism is the Om Mani Padme Hum mantra, which is believed to be the embodiment of the compassionate energy of the Buddha. Jainism also has its own mantras, which are believed to have the power to connect the practitioner with the divine and to transform their consciousness. The Navkar Mantra is one of the most important mantras in Jainism, and it is recited daily by many Jains as part of their spiritual practice. Overall, ancient mantras are considered to be powerful tools for spiritual growth and transformation, and they continue to be an important part of many spiritual traditions today.
|| श्री सूक्तम ||
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजां |
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 1 ||
हे देवो के प्रतिनिधि अग्निदेव, सुवर्ण जैसे वर्णवाली, दरिद्रता के विनाश करने में हरिणी के जैसी गतिवाली और चपल, , सुवर्ण और चांदी की माला धारक चंद्र जैसे शीतल, पुष्टिकरी, सुवर्णस्वरूप, तेजस्वी, लक्ष्मीजी को मेरे यहाँ मेरे अभ्युदय के लिए लेके आईये |
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहं || 2 ||
जिसके पास वेदो की प्राप्ति हुई है, हे लक्ष्मी नारायण | कभी भी मेरे पास से वापिस ना जाए ऐसी अविनाशी (अस्थिर लक्ष्मी) लक्ष्मी को मेरे वहा सन्मान से लेके आइये जिस वजह से सुवर्ण,गाय,पृथ्वी,घोडा,इष्टमित्र ( पुत्र-पौत्रादि-नौकर) को में प्राप्त कर सकू |
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम |
श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषतां || 3 ||
जिस सेना के आगे अश्व,दौड़ते है, ऐसे रथके मध्यमे बैठी हुई हो | जिसके आगमन से हाथियों के नाद की भव्यता से ज्ञात होता है की लक्ष्मीजी आई है | ऐसी लक्ष्मी का आवाहन करता हु वो लक्ष्मी मेरे ऊपर सदा कृपायमान हो, में उस स्थिर लक्ष्मी को बुला रहा हु | आप मेरे यहाँ आओ और स्थिर निवास करो |
ॐ कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं |
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियं || 4 ||
जो अवर्णनीय और मधुर हास्यवाले है, जो सुवर्ण स्वरुप तेजोमय पुंज से प्रसन्न,तेजस्वी, और क्षीर समुद्र में रहनेवाले षडभाव से रहित भावना से प्रकाशमान और सदा तृप्त होने से भक्तो को भी तृप्त रखनारी अनासक्ति की प्रतिक कमल के आसन पर बिराजमान और कमल के जैसे ही मनोहर वर्णवाली लक्ष्मीजी को मेरे घर में आने के लिये में उनका आवाहन करता हु |
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम |
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वं वृणे || 5 ||
जो चन्द्रमा के समान प्रकाशमान,सुखद,स्नेह,कृपा से भरपूर वैभवशाली,श्रेष्ठ कान्तिवाली और निर्मल कान्तिवाली जो सर्व देवोसे युक्त है( देवो ने जिनका आश्रय लिया हुआ है ),कमल के जैसी अनासक्त लक्ष्मी के कारण शरण में में जा रहां हु,जिस दुर्गा की कृपा द्वारा मेरी दरिद्रता का विनाश हो इसलिए में माँ लक्ष्मी का वरण करता हु |
ॐ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्वः |
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः || 6 ||
हे सूर्य के समान तेजस्वी माँ जगतमाता | लोककल्याण हेतु आप वनस्पति स्वरुप बिल्ववृक्ष आपसे ही उत्पन्न हुआ है,आपकी ही कृपा से बिल्वफल मेरे अंतःकरण में रहे,अज्ञान कार्य-शोक-मोह आदि जो मेरे अन्तः दरिद्र चिह्न है,उसका विनाश करनेवाले है जैसे धनभाव रूप से मेरे बाह्य दारिद्र का विनाश करते है |
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह |
प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में || 7 ||
हे माँ लक्ष्मी जो महादेव के सखा कुबेर और यश के अभिमानी देवता चिंतामणि सहित मुझे प्राप्त हो | में इस राष्ट्र में जन्मा हु, इसलिए वो कुबेर मुझे जगत में व्याप्त हुई लक्ष्मी को प्रदान करे यश-समृद्धि-ब्रह्मवर्चस प्रदान करे |
ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठांलक्ष्मीं नाशयाम्यहं |
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद में गृहात || 8 ||
मुझे सुलक्ष्मी प्राप्त होवे | उससे पहले मेरे दुर्बल देह जो दरिद्रता और मलिनता से युक्त है, उसका में उद्योगादि से विनाश करता हु,हे महालक्ष्मी आप मेरे घर में से अभावता और दरिद्रता का विनाश करो |
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करिषिणीम |
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियं || 9 ||
हे अग्निनारायण देव सुगंधवाले, जो सदा पुष्ट सर्वसुख समृद्ध, सर्व सृष्टि को अपने नियमानुसार रखनेवाले सर्वप्राणियो के आधार पृथ्वी स्वरुप रहे हुये लक्ष्मीजी में आपका अपने राष्ट्र में आने के लिये आवाहन करता हु |
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि |
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः || 10 ||
हे माँ लक्ष्मीजी आपकी ही कृपा से मेरे मनोरथ, शुभ संकल्प, और प्रमाणिकता को में प्राप्त होता हु, आपकी ही कृपा से गौ-आदि पशुओ को भोजनादि प्राप्त हो, हे माँ लक्ष्मी सभी प्रकार की संपत्ति को आप मुझे प्राप्त कराये |
ॐ कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम |
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीं || 11 ||
हे लक्ष्मी देवी कर्दम नामक पुत्र से आप युक्त हो, हे लक्ष्मी पुत्र कर्दम, आप मेरे घर में प्रसन्नता के साथ निवास करो, कमल की माला धारण करनेवाली आपकी माताश्री लक्ष्मी-मेरे कुल में स्थिर रहे ऐसा करो | ( लक्ष्मीजी जो अपना पुत्र प्रिय है इसलिए लक्ष्मीजी अपने पुत्र के पीछे दौड़ती आती है )
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे |
नि च देविं मातरं श्रियं वासय मे कुले || 12 ||
हे लक्ष्मीजी के पुत्र चिक्लीत जिसके नाम मात्र से लक्ष्मीजी आर्द्र ( पुत्र प्रेम से जो स्नहे से भीग जाती है ) आप कृपा करके मेरे घर में निवास करे और अपनी माताजी लक्ष्मीजी को मेरे यहाँ निवास कराये | जल में से आविर्भूत हुए लक्ष्मीजी मेरे घर स्नेहयुक्त मंगल कार्य होते रहे ऐसा मुझे आशीर्वाद प्रदान करे |
ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीं |
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 13 ||
हे जातवेद अग्नि भीगे हुये अंगोंवाली, कोमल हृदयवाली, अपने हाथो में धर्मदण्ड रूपी लकड़ी धारण की हुई, सुशोभित वर्णवाली, जिसने स्वयं सुवर्ण की माला धारण की हुई है, वो जिसकी कांति सुवर्णमान है, जो तेजस्वी सूर्य के समान है ऐसी लक्ष्मी मेरे घर आओ | आगमन करावो |
ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीं |
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 14 ||
हे जातवेद अग्नि | भीगे हुए अंगोंवाली आर्द्र ( हाथी की सूंढ़ से जिसका सतत अभिषके हो रहा है वो ) हाथो में पद्म धारण करने वाली, गौरवर्ण वाली, चंद्र के जैसी प्रसन्नता देनेवाली, भक्तो को पुष्ट प्रदान करने वाली, उस सुवर्णस्वरूप तेजस्वी लक्ष्मी को कृपा करके मेरे वहा भेजो |
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान विन्देयं पुरुषानहं || 15 ||
हे अग्निनारायण आप मेरा कभी त्याग ना करे, ऐसी अक्षय लक्ष्मी को आप मेरे लिए भेजने की कृपा करे जिसके आगमन से मुझे बहुत धन-सम्पत्ति-गौ-दास-दासिया-घोड़े-पुत्र-पौत्रादि को में प्राप्त करू |
ॐ यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहयादाज्यमन्वहं |
सूक्तं पञ्चदशचँ च श्रीकामः सततं जपेत || 16 ||
जिस मनुष्य को अपारधन की प्राप्ति करनी हो या धन-संपत्ति प्राप्त करने की कामना हो उस मनुष्य को नित्य स्नानादि कर्म करके पूर्णभाव से अग्निमे इस ऋचाओं द्वारा गाय के घी से यज्ञ करना चाहिए |
|| श्रीसूक्त सम्पूर्णं ||
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